उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई, 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया। हालांकि, इस अचानक इस्तीफे के पीछे कई गहरे कारणों की अटकलें लगाई जा रही हैं। आधिकारिक तौर पर, धनखड़ ने अपने इस्तीफे में कहा कि वे "स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने" के लिए पद छोड़ रहे हैं। लेकिन विपक्षी नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे अन्य कारण भी हैं।
मुख्य कारणों में से एक यह बताया जा रहा है कि धनखड़ ने विपक्ष के 63 सांसदों द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार कर लिया था, जिसके बाद सरकार के साथ तनाव बढ़ गया। इस नोटिस का संबंध जज के आवास से भारी नकदी बरामदगी से था। सरकार इस मुद्दे पर अपनी ओर से प्रस्ताव लाना चाहती थी, लेकिन धनखड़ के इस कदम ने उनकी योजना को प्रभावित किया, जिससे सरकार नाराज हो गई। सूत्रों के अनुसार, इसके बाद धनखड़ और केंद्र सरकार के बीच तीखी बातचीत हुई, जिसमें धनखड़ ने अपने संवैधानिक अधिकारों का हवाला दिया।
इसके अलावा, सोमवार को संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन, राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की बैठक में केंद्रीय मंत्रियों जे.पी. नड्डा और किरेन रिजिजू की अनुपस्थिति ने भी विवाद को बढ़ाया। विपक्षी नेता जयराम रमेश ने दावा किया कि धनखड़ को मंत्रियों की अनुपस्थिति के बारे में व्यक्तिगत रूप से सूचित नहीं किया गया, जिससे वे नाराज हुए और उन्होंने बैठक को स्थगित कर दिया। रमेश ने कहा कि दोपहर 1 बजे से 4:30 बजे के बीच "कुछ बहुत गंभीर" हुआ, जिसने धनखड़ के इस्तीफे का कारण बना।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने दावा किया कि धनखड़ का इस्तीफा "स्वास्थ्य कारणों" से कहीं अधिक गहरे कारणों से प्रेरित है। कुछ का मानना है कि सरकार के साथ बढ़ते मतभेद, खासकर न्यायपालिका से संबंधित मुद्दों पर, और दिसंबर 2024 में उनके खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव ने भी स्थिति को जटिल किया। इसके बावजूद, धनखड़ ने अपने कार्यकाल में किसानों के मुद्दों, न्यायिक जवाबदेही और संसदीय नियमों के पालन पर जोर दिया, जिसके कारण वे अक्सर विवादों में रहे।
हालांकि, बीजेपी नेताओं ने विपक्ष से धनखड़ के बताए गए स्वास्थ्य कारणों पर भरोसा करने और अटकलों से बचने का आग्रह किया है। फिर भी, इस इस्तीफे ने राजनीतिक हलकों में तीखी बहस छेड़ दी है, और कई लोग इसे संसदीय लोकतंत्र और सरकार के साथ संवैधानिक पदों की स्वायत्तता पर सवाल उठाने वाला कदम मान रहे हैं।
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