गंगोत्री, गौमुखः तपोभूमि











चार धाम यात्रा के पड़ावों में गंगोत्राी दूसरे

स्थान पर है, यह आध्यात्मिक यात्रा यमुनोत्राी से शुरू

होकर गंगोत्राी, केदारनाथ होकर बद्रीनाथ पर समाप्त

होती है। इस वर्ष अक्टूबर में मुझ्ो इस यात्रा का

सौभाग्य प्राप्त हुआ और मैंने गंगोत्राी के साथ गौमुख

भी जाने का निर्णय कर लिया।

यमुनोत्राी से उत्तरकाशी की दूरी लगभग 150

कि.मी. है और यहाँ से गंगोत्राी 120 किमी है। यात्रा

पर वैसे तो अकेला ही आया था पर यमुनोत्राी से

पहले तीन चार लोग और मिल गए जिन्हें गंगोत्राी भी

जाना था तो यमुनोत्राी में दर्शन उपरान्त हम सब एक

साथ ही उत्तरकाशी पहुँचे। यहाँ आते-आते शाम हो

गयी तो हम सब पास ही स्थित बिरला धर्मशाला में

रुके।

हरिद्वार से आते समय बस में ही मेरी मुलाकात

बलिया के एक सज्जन से हुई जो 2014-15 में

साइकिल से ही चार धाम यात्रा कर चुके थे और इस

बार गंगोत्राी जा रहे थे। मेरे अनुरोध पर वह भी मेरे

साथ यमुनोत्राी आ गए और अब हमने साथ ही गौमुख

जाने का निर्णय किया। अगले दिन हम जल्दी जागे

और पांच बजे टैक्सी स्टैंड पहुँच गए, हम पांच लोग

थे, यहाँ दो लोग और मिले और हमने गाड़ी कर ली।

रास्ता भागीरथी के साथ-साथ ही चलता है और

धीरे-धीरे ऊंचाई बढ़ने लगती है। उत्तरकाशी जहाँ

1200 मीटर पर है वही गंगोत्राी 3400 मीटर की ऊंचाई

पर है और रास्ते में आपको हिमालय की बहुत सी

चोटियाँ दिखाई देती हैं। रास्ता बहुत सुन्दर है, चीड़

- देवदार के वृक्षों से भरा और ऊंचाई बढ़ने के साथ

भागीरथी बहुत नीचे छूट जाती है।

”यहाँ पर ‘आल वेदर रोड’ का काम चल रहा

है जिसके कारण जगह-जगह भूस्खलन हो

रहे हैं और पहाड़ दरक रहे हैं सो अलग।

साथ ही साथ छोटे-बड़े बांधों का निर्माण

कार्य भी निर्बाध गति से जारी है। यह सब

इसलिए कि यहाँ ज्यादा से ज्यादा लोग आ

सकें और अधिक से अधिक पर्यटक यहां आ

कर हिमालय की दुर्गति देख सकें। ऐसा ही

शायद हमारा विश्वास है।“

लगभग दो घंटे के बाद हम गंगानी पहुँचे। यहाँ

गर्म पानी का कुंड है जिसमें लोग आराम से नहाते हैं,

यहाँ से आगे का रास्ता अत्यंत रमणीक है। थोड़ी देर

बाद हम ह£षल पहुँच गए। यह एक मनोहारी जगह

है और यहाँ के सेब बहुत प्रसिद्ध हैं। चारों ओर सेब

के बागान और रास्ते के साथ साथ बहती कल-कल

करती भागीरथी तथा उसके दोनों ओर गगनचुम्बी

चोटियाँ, सचमुच ही यह दृश्य किसी स्वर्गलोक से कम

नहीं है। लगभग 9 बजे हम पवित्रा गंगोत्राी धाम पहुँच

गए। मौसम बिल्कुल साफ और धूप खिली थी। लेकिन

बर्फीली हवाएं हमारा स्वागत कर रही थीं। सामने ही

फारेस्ट आॅफिस है, जहाँ गौमुख जाने के लिए परमिट

मिलता है। यहाँ हमनें अपने तीनों साथियों से विदा

ली, परमिट लेने में पांच मिनट ही लगे। यह आॅफिस

सवेरे 7 से 10 तक खुलता है और रोज 300 परमिट

ही दिए जाते हैं।

यहाँ से मंदिर पहुंचने में पांच मिनट का ही

समय लगता है। इस समय ज्यादा भीड़ नहीं थी और

आराम से माँ गंगा के दिव्य दर्शन हुए। मंदिर प्रांगण में

ही भगवान शंकर, हनुमान जी, माँ दुर्गा, माँ सरस्वती

और भागीरथी ऋषि के भी मंदिर हैं और पास ही बहती

है कल-कल करती दूधिया भागीरथी नदी। यहाँ घाट

बने हुए हैं, आराम से बैठकर नहा सकते हैं पर पानी

एकदम बर्फीला है। थोड़ा जल छिड़ककर और माँ गंगा को प्रणाम कर हमने गौमुख के लिए प्रस्थान किया।

वैसे यहां कुछ साहसी लोग भी थे जो इतने ठंडे पानी

और खुले मैदान में नहा रहे थे। उनकी यह भक्ति देख

मन श्रृद्धा से नतमस्तक हो गया।

गौमुख का रास्ता मंदिर से होकर ही जाता

है और भागीरथी के साथ-साथ चलता है। गंगोत्राी

नेशनल पार्क यहाँ से एक कि.मी. दूर है। यहां आपके

परमिट कर जांच करने के बाद आगे जाने दिया जाता

है। यहाँ से आगे का रास्ता बहुत सुंदर है। दोनों और

बर्फ से लदी चोटियां और सामने सुदर्शन पर्वत है,जो

आगे रास्ते के साथ-साथ ओझ्ाल हो जाता है, नीचे

कल-कल बहती भागीरथी नदी है और दोनों ओर

चीड़ और भोज वृक्षों के जंगल हैं।

सुदर्शन पर्वत का नजारा

मेरे नए मित्रा सुमंत मिश्रा जी की आयु लगभग 62

वर्ष है, बलिया के रहने वाले हैं और दो बार साइकिल

से बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा कर चुके हैं।

मिश्रा जी अदम्य इच्छाशक्ति के धनी हैं। मेरे पास तो

रुक्सैक था जिसे मैं कंधे पर टांग कर आराम से चल

रहा था। परन्तु इनके पास तो बैग के साथ एक झ्ाोला

भी था, जिसे लेकर चलना इतना आसान नहीं है फिर

भी भगवान का नाम लेकर आगे बढ़े चले जाते हैं।

मिश्रा जी अत्यंत ही विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं। पिछले

कई वर्षों से उन्होंने अन्न ग्रहण नहीं किया है बस फल,

आलू और मूंगफली पर जीवित रहते हैं। सच में ही

वेशभूषा, रहन सहन आचार-विचार से पूरे संत हैं और

ऐसे संत की यादगार के तौर पर एक फोटो लेने से

अपने को रोक नहीं पाया। यहाँ मुझ्ो इस सत्संग का

अनायास ही लाभ मिल गया। श्री रामचरितमानस में

तुलसीदास जी ने सही लिखा है, ‘‘ बिनु हरि कृपा

मिलई नहीं संता।’’

श्री सुमंत मिश्र

यहाँ से चीड़बासा छः कि.मी. है और अबु मोबाइल

नेटवर्क भी नहीं था। अक्टूबर का महीना, धूप खिली

पर हवाएं बर्फीली, और बहुत से ट्रेकर गौमुख और

तपोवन जा रहे हैं, अधिकतर किसी न किसी ट्रे¯कग

कंपनी के जीतवनही जा रहे हैं। कुछ पर्वतारोही भी

थे, जिन्हें गौमुख ग्लेशियर से होते हुए तपोवन स्थित

अत्यंत पवित्रा शिव¯लग पर्वत और इसके दूसरी ओर

नंदनवन के पास सतोपंथ पर्वत की चढ़ाई करनी थी,

कुल मिलाकर बहुत सी टीमें और ट्रेकर्स। यह स्थान

अत्यंत ऊंचाई पर पाई जाने वाली नीली भेड़ों, हिम

तेंदुओं और कुछ दुर्लभ हिमालयी जीव जंतुओं के

कारण जाना जाता है पर अब मानवीय गतिविधियाँ

बढ़ने के कारण ये विलुप्ति की ओर हैं और हमें गौमुख

तक बस कुछ भरलों (हिरण) के ही दर्शन हुए। पर

आप इसे यूँ ही हल्के में नहीं ले सकते, अगर हम अभी

सजग नहीं हुए और हिमालय की इस दुर्दशा के बारे में लोगों को जागरूक नहीं किया तो इस अनमोल धरोहर

का विनाश होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

गंगोत्राी से हमने 10ः30 पर प्रस्थान किया था,

अभी दो घंटे हो चुके थे और हम चीड़बासा पहुँचने

वाले थे और अब भागीरथी की चोटियाँ पूरी तरह से

आँखों के सामने थीं। पूरी तरह बर्फ से लदी ये तीन

चोटियाँ अब गौमुख तक आपका स्वागत करती हैं।

इनकी ऊंचाई क्रमशः 6450, 6510 और 6850 मीटर

हैं, और यह भागीरथी में जल का एक मुख्य स्रोत हैं।

लगभग एक बजे हम चीड़बासा पहुँच गए, जो कि

एक छोटी सी जगह है जहाँ आप कै¯म्पग कर सकते

हैं। यहां, इस ट्रैक पर, चाय नाश्ते की एक ही दुकान

है। कभी-कभी हल्का बीएसएनएल का नेटवर्क यहाँ

पकड़ रहा था जिससे बहुत प्रयास के उपरांत घर में

बात हो सकी।

दस-पंद्रह मिनट यहाँ रूककर हम भोजबासा

के लिए चल दिए जो यहाँ से आठ कि.मी. है। आगे

का रास्ता बहुत पथरीला है, पर पूरे रास्ते को अच्छी

तरह से चिन्हित किया गया है, इसलिए भूलने का डर

नहीं है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं कि ऊंचाई भी

बढ़ने लगती है। यहां हवा और ठण्डी होती जाती है,

भागीरथी पर्वत और भी ज्यादा साफ़ और चमकदार

दिखने लगता है। यहाँ से आगे तीन कि.मी. का रास्ता

भूस्खलन जोन में है और सरकते हुए पर्वतों के नीचे

से जाता है। यहाँ 2013 में भयंकर भूस्खलन हुआ था।

तबसे ही ये पहाड़ दरक रहे हैं। भगवान शंकर का

नाम लेकर हमने इस जोन को पार किया। बीच-बीच

में बहती छोटी-बड़ी धाराओं को पार करने के लिए

भोज की शाखाओं से अस्थायी पुल बने हुए हैं, जो

बड़े आकर्षक लगते हैं पर इन्हें संभल कर पार करना

पड़ता है।

ऊंचाई बढ़ने के कारण सांस जल्दी-जल्दी

लेना पड़ता है, जिससे हम जल्दी थक जाते हैं और

बार-बार बैठना पड़ रहा था ¯कतु जल्दी ही उठना भी

पड़ता था क्योकि बैठने से अधिक ठण्ड लगने लगती

और हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ चलते थे। सूर्यास्त का समय हो गया और पहाड़ों की

चोटियों ने सूर्य को छिपा लिया था। अब तापमान तेजी

से गिरने लगा था। हमें चीड़बासा से चले पांच घंटे

बीत गए थे और थकान के कारण हमारे कदम धीरे हो

गए और तभी एक पत्थर पर बड़ा-बड़ा लिखा देखा

‘’लाल बाबा आश्रम भोजबासा आधा किलोमीटर’’।

इसे पढ़कर थके हुए शरीर में पुनः जान आ गई और

तभी थोड़ा आगे जाकर पवित्रा शिव¯लग पहाड़ के प्रथम

दर्शन होते हैं। अभी केवल शिखर का एक ओर का

दृश्य ही दिख पा रहा था। पर्वत शिखर को प्रणाम

कर हम आगे बढ़े और लगभग 6 बजे भोजबासा पहुँच

गए।

दूर से ली गई शिव¯लग पहाड़ की एक तस्वीर

यह एक घाटी है। यहां रहने के लिए गढ़वाल

मंडल विकास निगम यानि ळडटछ का काॅटेज/

टेंट स्टे और लाल बाबा का आश्रम है। दोनों का ही

किराया 300 रुपये बैड है। लेकिन आश्रम में खाने का

कोई पैसा नहीं लिया जाता है। हम पहले ळडटछ

पहुंचे, टीन के बने हुए छोटे-छोटे कमरे पूरे भरे हुए थे

पर टेंट खाली था। एक टेंट में साफ़ सुथरे 6-8 तख़्त

और रजाई-गद्दे रखे थे। हमें यही ठीक लगा और

हमने रात यहीं बितायी। मौसम बहुत सर्द हो चुका

था, जल्दी से हमने गर्म कपड़े पहने और परिसर में

ही बनी हुइ कैंटीन में खाना खाया। मिश्रा जी ने अपने

साथ लाई मूंगफलियां गरम करवा लीं। यहाँ हमारी

मुलाकात ओएनजीसी की एक पर्वतारोहण टीम से हुई

जो सतोपंथ पर्वत की सफल चढ़ाई करके वापस आ

रही थी। उन्हें इस अभियान में एक महीने का समय

लगा था।

उस दिन मंगलवार था। हनुमान जी का दिन,

मन ही मन सुन्दरकांड का जाप किया, और आगे की यह एक घाटी है। यहां रहने के लिए गढ़वाल

मंडल विकास निगम यानि ळडटछ का काॅटेज/

टेंट स्टे और लाल बाबा का आश्रम है। दोनों का ही

किराया 300 रुपये बैड है। लेकिन आश्रम में खाने का

कोई पैसा नहीं लिया जाता है। हम पहले ळडटछ

पहुंचे, टीन के बने हुए छोटे-छोटे कमरे पूरे भरे हुए थे

पर टेंट खाली था। एक टेंट में साफ़ सुथरे 6-8 तख़्त

और रजाई-गद्दे रखे थे। हमें यही ठीक लगा और

हमने रात यहीं बितायी। मौसम बहुत सर्द हो चुका

था, जल्दी से हमने गर्म कपड़े पहने और परिसर में

ही बनी हुइ कैंटीन में खाना खाया। मिश्रा जी ने अपने

साथ लाई मूंगफलियां गरम करवा लीं। यहाँ हमारी

मुलाकात ओएनजीसी की एक पर्वतारोहण टीम से हुई

जो सतोपंथ पर्वत की सफल चढ़ाई करके वापस आ

रही थी। उन्हें इस अभियान में एक महीने का समय

लगा था।

उस दिन मंगलवार था। हनुमान जी का दिन,

मन ही मन सुन्दरकांड का जाप किया, और आगे की

यात्रा के लिए भगवान से प्रार्थना की। लगभग सात

बजे तक टेंट पूरा भर गया और लोग मिश्रा जी की

बातों और कहानियों का आनंद लेने लगे। आठ बजे

तो जनरेटर बंद कर दिया गया और बातचीत को

विराम लग गया।

सुबह पांच का अलार्म लगा कर मैं भी सो गया।

सुबह मौसम साफ़ था, अभी हवा नहीं थी। हम गौमुख के लिए निकल पड़े। यहाँ से लगभग चार कि.मी. का
कठिन रास्ता है, बाद का आधा रास्ता बोल्डर से भरा
हुआ है और बहुत संभल कर चलना पड़ता है। जैसे
जैसे हम आगे बढ़ते हैं, शिव¯लग पर्वत प्रकट होने
लगता है। शिव¯लग पर्वत गौमुख की दायीं ओर तपोवन
में है जहाँ से इसके पूर्ण दर्शन होते हैं पर गौमुख तक
ये पर्वत लगभग पूर्णतः दृष्टिगोचर हो जाता है। एक
घंटे के बाद उगते सूर्य की पहली स्व£णम किरणें जब
इस पर्वत शिखर पर पड़ीं तब स्वर्ण के समान चमकता
ये बड़ा ही दिव्य प्रतीत हुआ।
एक ओर भागीरथी और दूसरी ओर शिव¯लग
पर्वत और दोनों ही स्व£णम रंग में रंगे, आँखें मानों
ठिठक सी गई थीं। दो घंटे के बाद एक जगह रास्ता
बंद था। आगे जाने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा था,
हम यहाँ सबसे पहले आये थे तो हमने रूक कर दूसरों
की प्रतीक्षा की।
शिव¯लग पर्वत
यहाँ आने से पहले मैंने पढ़ा था कि जुलाई
में यहाँ भीषण भूस्खलन हुआ था जिससे गौमुख की
वास्तविक संरचना नष्ट हो गयी और यह कई जगहों
से टूट कर अपने स्थान से और पीछे चला गया।
गौमुख से बिल्कुल पहले हमें इस आपदा के संकेत
मिलने शुरू हो गए। लगभग 10 मिनट बाद पीछे से कुछ लोग आते
दिखाई पड़े वो भी यहाँ आकर रुक गए, थोड़ी देर
बाद कुछ और सदस्यों के साथ उनका गाइड भी आया
था। पास ही पहाड़ी पर हुए भूस्खलन के कारण आयी
मिटटी का एक बहुत ऊँचा ढेर बना था लगभग 2-3
मंजिला ऊँचा बहुत अस्थायी जो कभी भी अपनी जगह
से हट सकता था। हमें यह बहुत असुरक्षित लगा और
एक बार तो हमने वापस जाने का मन बना लिया।
लेकिन गाइड उस पर चढ़ गया इसके उस पार नीचे
उतर कर आगे का रास्ता था। गाइड लोगों को हाथ
पकड़ कर चढाने और उतारने लगा, बाकी लोगों को
चढ़ते देखकर हमनें भी हिम्मत जुटाई और गाइड की
सहायता से इसके ऊपर चढ़ गए, नीचे उतरना तो
और भी कठिन था, फिसलती मिटटी और पकड़ने
के लिए कुछ नहीं, पर गाइड की सहायता से हम
धीरे-धीरे नीचे उतर गए।
यह 10 मिनट बहुत ही कठिन बीते और इस
पल हमनें जितना जीवंत अनुभव किया वह शायद
इस यात्रा में फिर नहीं मिला। दूसरी ओर उतरकर मैं
थोड़ी देर बैठ गया, मन आश्चर्यजनक रूप से शांत हो
गया था, विचित्रा अनुभव था इतनी शांति तो घंटों के
ध्यान से भी नहीं मिलती है। मन ही मन भगवान शंकर
को याद किया और अ¨म नमः शिवाय बोलकर आगे
प्रस्थान किया।
थोड़ी देर बाद हम गौमुख पहुँच गए या कहें कि
नए गौमुख तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि गाय के
मुख सद्रश्य इसकी आकृति तो बहुत पहले ही नष्ट
हो गयी है। पर आप बिल्कुल पास तक जाकर इसको
देख सकते हैं। भागीरथी का कल-कल करता जल
इस गुफा से ही बाहर आता था। पर इस बार के
बड़े भूस्खलन के बाद भागीरथी ने मार्ग परिव£तत कर
लिया है, मार्ग अवरुद्ध हो जाने के कारण पहले लगभग
तीन मीटर गहरी झ्ाील का निर्माण हुआ और फिर इस
धारा को आगे जाने का मार्ग मिला।
अब यह धारा घूम कर आती है और आप बस
कुछ ऊपर से ही इसे देख सकते हैं, उद्गम स्थल
तक जाना अब असंभव हो गया है। हमने और साथ ही
अन्य यात्रियों ने दूर से ही माँ गंगा को प्रणाम किया,
शिव¯लग पर्वत यहाँ से साफ दिखता है, उज्जवल स्वेत
बर्फ से ढका हुआ पर्वत यहाँ बड़ा ही दिव्य प्रतीत होता
है, पर्वत को नमन कर और धूप, कपूर से भगवान
शंकर की आरती कर हमने कुछ देर यहीं शांति से
विश्राम किया।
4400 मीटर की ऊँचाई पर स्थित गौमुख एक
समय ऋषियों-मुनियों की तपस्थली हुआ करता था,
इसके दाहिनी ओर स्थित तपोवन में अभी भी कुछ
संत तपस्या में लीन थे। पर अब यहाँ साधु सामान्यतः
नजर नहीं आते, शायद उन्होंने भी स्थान बदल लिया
हो, उनके भी अपने ही कारण हो सकते हैं।
गंगोत्री जहाँ कभी भूली भटकी इक्का-दुक्का
कारें ही दिखती थीं, अब एक मुख्य पर्यटन
स्थल बन चुका है और यात्रा के समय यहाँ
प्रतिदिन सैकड़ों कारें और अन्य वाहन आते
हैं। इससे यहाँ का मौसम गर्म हो रहा है।
इनमें से हम जैसे बहुत से लोग गौमुख और
तपोवन भी जाते हैं, कुछ अकेले तो कुछ पूरे
परिवार के साथ, जिससे यहाँ की शांति भंग
होती है।
गंगोत्राी ग्लेशियर जो चैखम्भा (आस-पास
का सबसे ऊँचा पर्वत 7000 मीटर) से शुरू होता है,
लगभग 30 किमी लम्बा है और आधे से लेकर 2 किमी
तक चैड़ा है, ग्लोबल वा²मग के कारण हर वर्ष 22-25
मीटर पीछे सरक रहा है और ये एक बहुत विकट समस्या है। आस-पास के इलाकों के अंधाधुंध विकास
और पेड़ों की कटाई से समस्या और विकराल होती
जा रही है और ये भी सुनने में आया है कि इसको
टूरिस्ट सेंटर के रूप में विकसित करने की योजना है।
आप सोच सकते हैं कि हम लोग विकास के नाम पर
कितने ज्यादा असंवेदनशील होते जा रहे हैं।
चैखम्भा ग्लेशियर गंगोत्राी
प्रकृति पर विजय पाने की इच्छा पाले बहुत से
पर्वतारोही इन दुर्गम स्थलों पर महीनों पड़े रहते हैं तो
कुछ यूँ ही बस घूमने की इच्छा से इन जगहों पर चले
आते हैं और इससे कम£शयल ट्रे¯कग कंपनियों का
बिज़नेस फल-फूल रहा है। लेकिन हम इससे अंजान
बने हुए है कि इससे यहाँ के पारिस्थितिक तंत्रा पर
कितना बुरा असर पड़ रहा है।
मेरा ख्याल है कि अब आप समझ्ा सकते हैं
कि ऋषि मुनि क्यों यहाँ से अदृश्य हो गए। उनके
पास दुरूह और अगम स्थलों में जाने के अलावा कोई
विकल्प नहीं बचा और इसी के साथ यहाँ की शांति,
सुन्दरता और दिव्यता भी कम होती जा रही है।
आसमान इतना भी नीला हो सकता है, धूप
इतनी भी चमकीली हो सकती है या तारे इतनें भी
साफ़ दिख सकते हैं, इसका आपको हिमालय के ऐसे
स्थानों पर आकर ही अनुभव हो सकता है और मैं
अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझ्ाता हूँ की मुझ्ो
ये सब कई बार अनुभव करने का अवसर प्राप्त हुआ। 
्रकृति पर विजय पाने की इच्छा पाले बहुत से
पर्वतारोही इन दुर्गम स्थलों पर महीनों पड़े रहते हैं तो
कुछ यूँ ही बस घूमने की इच्छा से इन जगहों पर चले
आते हैं और इससे कम£शयल ट्रे¯कग कंपनियों का
बिज़नेस फल-फूल रहा है। लेकिन हम इससे अंजान
बने हुए है कि इससे यहाँ के पारिस्थितिक तंत्रा पर
कितना बुरा असर पड़ रहा है।
मेरा ख्याल है कि अब आप समझ्ा सकते हैं
कि ऋषि मुनि क्यों यहाँ से अदृश्य हो गए। उनके
पास दुरूह और अगम स्थलों में जाने के अलावा कोई
विकल्प नहीं बचा और इसी के साथ यहाँ की शांति,
सुन्दरता और दिव्यता भी कम होती जा रही है।
आसमान इतना भी नीला हो सकता है, धूप
इतनी भी चमकीली हो सकती है या तारे इतनें भी
साफ़ दिख सकते हैं, इसका आपको हिमालय के ऐसे
स्थानों पर आकर ही अनुभव हो सकता है और मैं
अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझ्ाता हूँ की मुझ्ो
ये सब कई बार अनुभव करने का अवसर प्राप्त हुआ।
गौमुख में सुबह के नौ बज चुके थे और तापमान
अभी से 15 डिग्री पहुँच चुका है, घूम के बहती गंगा
माँ का कोलाहल सुनकर ऐसा लगता है मानों अपने
पुराने स्वरुप को पाने के लिए पुकार रही हों। मैया
को उनका वही पुराना गौरवशाली स्वरुप पुनः प्राप्त हो
ऐसी भगवान शिव से प्रार्थना कर, मिश्रा जी के साथ
मैंने शिव¯लग पर्वत को प्रणाम किया और इस दिव्य
स्थल से प्रस्थान कर वापस चल दिए अपने गंतव्य
की ओर।
अ¨म नमः शिवाय।। 

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