नरक चतुर्दशी 2017 पूजन विधि: जानिए क्या है नरकचतुर्दशी और क्यों मनाया जाता है इसे दिवाली से एक दिन पहले



धनतरेस के अगले दिन यानि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को को नरक चतुर्दशी के रुप में जाना जाता है। इस दिन को कृष्ण चतुर्दशी, छोटी दिवाली, रुप चतुर्दशी, यमराज निमित्य दीपदीन के रुप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर को क्रूर कर्म करने से रोका। उन्होनें 16 हजार कन्याओं को उस दुष्ट की कैद से छुड़ाकर अपनी शरण दी और नरकासुर को यमपुरी पहुंचाया। नकरासुर वासनाओं के समूह और अहंकार का प्रतीक है। इसके बाद छुड़ाई हुई कन्याओं को सामाजिक मान्यता दिलवाने के लिए सभी को अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार किया। इस तरह से नरकासुर से सभी को मुक्ति मिली और इस दिन से इसे नरकाचतुर्दशी के रुप में छोटी दिवाली मनाई जाने लगी। नरकचतुर्दशी दिवाली के पांच दिनों के त्योहार में से दूसरे दिन का त्योहार है। इस दिन के लिए मान्यता है कि इस दिन पूजा करने वाले को नरक से मुक्ति मिलती है।



नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली के साथ इस दिन को रुप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन के लिए एक मान्यता ये है कि एक हिरण्यगभ नामक एक राजा थे, उन्होनें राज पाठ छोड़कर अपना जीवन तर में व्यतीत करने का निर्णय लिया। उन्होनें कई वर्षों तक इतनी कठिन तपस्या करी कि उनके शरीर पर कीडे़ पड़ गए और उनका शरीर सड़ने लगा। हिरण्यगभ को इस बात का बहुत दुख हुआ कि उन्होनें अपनी व्यथा नारद मुनि से कही। इसके बाद नारद मुनि ने कहा कि योग साधना के दौरान आप अपने शरीर की स्थिति सही नहीं रखते हैं इसी के कारण आपका शरीर सड़ गया है। हिरण्यगभ ने इसका निवारण पूछा तो नारद मुनि ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगा कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और उसके साथ ही रुप के देवता श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। इसलिए इस दिन को रुप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।

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