बात 17 साल पुरानी है जब देश के दिग्गज उद्योग घराने टाटा समूह के रतन टाटा ने CPIM को 1.5cr का चेक भिजवाया था तो पार्टी के तत्कालीन वरिष्ठ नेता एबी वर्धन ने उसे लौटा दिया था और कहा था कि पार्टी कॉर्पोरेट से चुनावी चंदा नहीं लेती. कन्हैया का कहना है की कानून के हिसाब से उन्हें ७० लाख चंदा जुटाने का अधिकार है ! मगर फिर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के आदर्शो का क्या होगा ? सीपीआई पार्टी कॉर्पोरेट फंडिंग के सख़्त ख़िलाफ़ है तो कन्हैया को इसकी अनुमति किसने दी? इस सन्दर्भ में केजरीवाल का उदहारण देते हुए बताना चाहूंगा की वो कांग्रेस को ब्रष्ट कहते रहे , सत्ता में आये और आज २०१९ एक लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ ही गठबंधन की कोशिश में जुटे है ! राजनीती है भाई कुछ भी हो सकता है !