Valmiki Jayanti : कैसे मरा मरा बोलते बोलते राम राम जपके महर्षि बने

महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था जिसे शरद पूर्णिमा के अन्य नाम से भी जाना जाता है। इस साल वाल्मीकि जयंती अंग्रेजी तारीख के मुताबिक 13 अक्टूबर (रविवार) को है। महर्षि वाल्मीकि की गिनती प्राचीन काल के महानतम ऋषियों में होती है। पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इन्हों ने अपनी कठिन तपस्या के बल पर महर्षि की उपाधि प्राप्त की थी। इन्हें आदि कवि भी कहा गया है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य को दुनिया का सबसे प्राचीन काव्य का दर्जा प्राप्त है। 

महर्षि वाल्मीकि एक डाकू थे , उन्हें मारने काटने के अलावा कुछ आता नहीं था ! एक दिन सप्तऋषिओ ने उन्हें "मरा" "मरा " जपने का निर्देश दिया और जपते जपते वो राम नाम जपने लगे ! 

संत ऋषियों ने राह में आकर उन्हें आध्यात्मिक चेतना का संदेश दिया। कहा धन कमाने के लिए आपके द्वारा अनजाने में कुछ ऐसे काम किए जा रहे हैं, जिसका आपको दंड भी भोगना पड़ेगा। साथ ही उनसे पूछा कि परिवार के पालन पोषण के लिए जिस धन को कमाने के लिए आपको दंड मिलेगा, क्या उस दंड में परिवार के अन्य लोग भी आपके साथ हिस्सेदार बनेंगे। इस पर वह ऋषियों को एक वृक्ष से बांधकर घर गए और परिवार के लोगों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि परिवार का भरण-पोषण आपका कर्तव्य है। इस पर आदि कवि लौट आए। संतों, ऋषियों को खेाल दिया तथा उनसे कहा कि आप मुझे ईश्वर की प्राप्ति का साधन बताएं। ऋषियों ने उन्हें राम मंत्र प्रदान किया। कवि ने यह अक्षर उलटा ही जपना शुरू कर दिया। मरा मरा कहने लगे, ऐसा कहने से राम शब्द हृदय में गूंज उठा और मणिपुर चक्र जाग्रत हो गया। फिर क्या था, वह साधाना में लग गए। लंबे समय तक साधना करने के बाद उन्हें समाधि से छुटकारा मिला और उन्हें वाणी, विद्या, ज्ञान, तथा सहस्त्रार्थ से अमृत का स्त्राव प्राप्त हुआ, जिससे उनका शरीर दिव्यता को प्राप्त हुआ। एक साधारण मानव ऋषि तत्व को प्राप्त हुआ।