कुंडली में राहु-केतु का प्रभाव: ज्योतिष शास्त्र क्या कहता है


कुंडली में राहु-केतु का प्रभाव: ज्योतिष शास्त्र क्या कहता है

ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को पाप ग्रह माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण का कारण राहु और केतु ही होते हैं। पौराणिक दृष्टि से इन्हें दो अलग-अलग छाया ग्रह माना गया है। आइए जानते हैं राहु-केतु का प्रभाव, उनके मंत्र और पौराणिक कथा।

पौराणिक ग्रंथों और ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राहु और केतु के कारण ही ग्रहण लगता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, जब सूर्य और चंद्रमा राहु और केतु के अत्यधिक निकट होते हैं, तो ग्रहण लगता है। यही नहीं, यदि जन्मकुंडली में अन्य ग्रह भी राहु के साथ स्थित हों, तो वे भी राहु से प्रभावित हो जाते हैं।

जन्मपत्रिका में राहु-केतु का अक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यदि इस अक्ष के एक ओर सभी ग्रह हों और दूसरी ओर कोई ग्रह न हो, तो कालसर्प योग बनता है। हालांकि प्राचीन होरा ग्रंथों में कालसर्प योग का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, परंतु राहु और केतु के प्रभाव और कालसर्प योग के प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता।


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