इस गांव में नामदेव समाज की आबादी ज़्यादा है. समाज के लोग मानते हैं कि रावण की पत्नी मंदोदरी इसी गांव की थी. इस नाते रावण उनका दामाद हुआ और जमाई राजा को भला कोई मारता है. दामाद की तो पूजा की जाती है. बताते हैं कि बस इसी मान्यता के कारण इस गांव में 300 साल से ज़्यादा समय से रावण की पूजा होती आ रही है.
गांववालों ने अपने जमाई राजा रावण की इस खानपुरा गांव में भव्य मूर्ति स्थापित कर रखी है. दशहरे के दिन सुबह से लोगों का यहां पहुंचना शुरू हो जाता है. लोग हाथ में थाल और ढोल नगाड़े बजाते हुए मूर्ति स्थल तक पहुंचते हैं और पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं.
गांव की परंपरा के अनुसार महिलाएं अपने ससुर और ससुराल के मर्दों के सामने सिर ढंककर जाती हैं. दशानन क्योंकि इस गांव के दामाद थे इसलिए महिलाएं रावण की मूर्ति के सामने से घूंघट में निकलती हैं.
गांव वालों के मन में रावण के प्रति इतनी श्रद्धा है कि वे यह भी मानते हैं कि जिसे भी एकातारा बुख़ार यानी एक दिन छोड़कर बुख़ार आता है, वे अगर रावण के पैर में रक्षा सूत्र बांधे तो तबियत ठीक हो जाती है.लोग यहां आते हैं और रावण के पैरों में लच्छा जिसे लाल धागा कहते हैं वो बांधते हैं. इस श्रद्धा के पीछे एक भाव यह भी है कि रावण अहंकारी था तो क्या हुआ, वह प्रकांड विद्वान भी था.
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